Friday, June 15, 2018

Micropoetry









यूँ किया आखिर, सारी घड़ियाें को हटा दिया मैंने
कल-आज हुए बाहर, वक़्त को दफा किया मैंने
उतार फेंके नकाब-ए-झूठ,सच को सिया मैंने
रूह को ऐसे किया रफ़ू, और कुछ जी लिया मैंने





© जूही गुप्ते

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