Sunday, January 8, 2017

अर्सा हुआ अब!


अर्सा हुआ अब!

उन बारिशों को बीतकर,
तुमसे मिलना और टूटना 
मेहँदी के पत्तों की तरह 
तुम्हारी पनाहों में 
रंग तुम्हें  देना 

रंग तुम्हारे गहराना 
मेरे हाथों पर 
मेरी बातों पर 

तुमसे न मिल पाना 
बहानों का ख़्वाहिशों बीच 
बार-बार आ जाना 
मेरी मेहँदी का धुलना ,
धुँधला होना और खो जाना 

हाँ ,सर्दियाँ बहुत है 
कोहरा छान देना तुम 
धूप ओढ़ लूँगी मैं 
हँसना चाहती हूँ 
रंगना चाहती हूँ 
तुम्हारी मेहँदी के रंग में 

अर्सा हुआ अब!


©  जूही गुप्ते 






Tuesday, January 3, 2017

Moonless Winter Night





New Year







Arranged all pictures

Of few compelled adieus
Some permanent reveries
Cherishing both
Welcome me new year!!