Sunday, December 17, 2017

काव्य और इतिहास


"मछली जल की", "चाँद कटोरी"
मीठी बोली, थपकी-लोरी
बेफिक्र नींद सुलाने वाला
था काव्य,
बचपन चहकाने वाला


थके प्रश्न को,रुके युद्ध को
मोह के आगे,झुके सिद्ध को
                                      गीता पाठ पढ़ाने वाला                                          
और काव्य,
रश्मिरथ चढ़ जाने वाला


    पाना जिसको राम रतन 
प्रेम-प्यास,बिसरे तन-मन
आर्त स्वर में गाने वाला
है काव्य,
साँवले में समाने वाला


 द्रुत-दामिनी सी इक रानी का
उस मिट्टी का, उस पानी का
शौर्य याद दिलाने वाला
हूँ काव्य,
युग-दीपक जलाने वाला


    प्यारे छूटे,प्याले टूटे  
यहीं कहीं पर बैठे -बैठे
‘मधुशाला’ पहुँचाने वाला
वही काव्य,
‘अग्निपथ’ सजाने  वाला

   लोभराज में निर्मल स्वाद के
होने वाले क्रांति-नाद के  
आज बीज बो जाने वाला
मैं काव्य
'कल',इतिहास कहलाने वाला


© जूही गुप्ते





© Juhi Gupte

Sunday, December 10, 2017

बँटवारा जरूरी है!


नहीं होते अच्छे किस्से 
जिनमें होते हों हिस्से 
खेल जैसे दिन-रातों के
ऐसे कुछ हालातों में 
बंटवारा ज़रुरी है


श्वेत-पुंज संचित हुआ 
जग रंगों से वंचित हुआ 
एक अनेक हो जाना है 
गर इंद्रधनु सजाना है 
तो,बंटवारा ज़रुरी है


कलकल नदी मचलती है 
सिमटती कहीं बिखरती है 
सागर को अपनाना है
हाँ, पहाड़ चीरते जाना है 
बंटवारा ज़रुरी है


रीत जन्म की बेमिसाल 
जुड़ती है इक दिव्य नाल 
ममता का स्पर्श पाना हो 
जननी को माँ कहलाना हो
तो,बंटवारा ज़रुरी है


जीवन के टुकड़े समान 
भूत भविष्य और वर्तमान 
वक्त ही पैमाना है
गूढ़ यही समझाना है
कि, बँटवारा ज़रूरी है


© Juhi Gupte

Thursday, December 7, 2017

Quote

"Good" need not be "Right" always

©® juhi gupte

Friday, December 1, 2017

इस बार















वीर रस की कविता तुम हो 
प्रखर-उज्ज्वला सविता तुम हो 
फिर चली अंत क्यों करने ऐसे ?
शुभ दिन अस्ताचल को जैसे 
शक्ति रूप का कर के श्रृंगार 
रुको,अड़ो,लड़ो इस बार


© Juhi Gupte