Tuesday, March 24, 2015

Ever since I met him...


I dreamt of a place to wander
A far off isle in the south
Days & nights naively ponder
Ever since I met him...

Soul drenched in reveries
Though sands were never mine
He walked some other hands
Ever since I met him…

I should have known his love
It was of time being kind
Gulping venom of a dove
Ever since I met him...

Neither did anyone glean
Nor one felt of the loss
I am writing in spleen


Ever since I met him…

© Juhi Gupte 

Monday, March 9, 2015

मेट्रो -2012



कुछ सामान में समेटे घर
कुछ कदमों की दूरी पर
दुआ भरी नम आँखों को
रास्ते ने मुड़ कर देखा है

आदतों को तरीके सीखाना है
नाम को वजूद बनाना है
नए मक़ाम के सवेरे को
रातो ने उठकर देखा है

कभी चुभती हुई दुपहरों में
और साथ चले हम लहरों पे
जन्मों के उन वादों को
बीते कल में सिमटे देखा है

अपनापन  है एहसान  यहाँ
हँसी के ऊँचे दाम यहाँ
भीड भरी इन शामों में
इंसानियत को ढलते देखा है

© जूही गुप्ते

Wednesday, March 4, 2015

क्या हुआ राम तेरे राज का?

शर तेरे क्यों ठंडे है पड़े??
दुष्ट 'निर्भय' डटे है खड़े!
अज्ञान का घूँघट ओढ़े
वह विकल प्रतिदिन युद्ध लड़े

बनी सामान मात्र साज का
क्या हुआ राम तेरे राज का?

थे जो सगे उस पर टूटे
बस मुठ्ठी भर का मॉस हुई
वह निष्पाप, वह अजन्मा
फिर रुढियों का ग्रास हुई

आँचल मैला हुआ समाज का
क्या हुआ राम तेरे राज का?

त्रेता में रावण थर्राया
भ्रमित -ज्ञानी मरण पाया
द्वापर में एक पुकार पर
तू त्रिलोक छोड़ दौड़ा आया

कलि में व्यापार उसकी लाज का
क्या हुआ राम तेरे राज का?

हे पत्थर में प्राण फूँकने वाले
क्या धूल चढ़ी तेरे शस्त्रो पर ?
"वनवासी ", अब सुंदर वस्त्रों में 

तू मंदिर बैठा पाषाण है !!

उठ !! समय है तेरे काज का
क्या हुआ राम तेरे राज का?

'सत्य ' भयभीत और मौन हुआ
था ईश्वर !! अब तू कौन हुआ ?
त्याग माधुर्य संहार तू कर
रूद्र का अवतार तू धर

दे हिसाब कल और आज का !!
क्या हुआ राम तेरे राज का?

© जूही गुप्ते