Monday, June 11, 2018

सफर





तुम अब भी आते हो
मत याद आया करो
आजकल नहीं करती मैं 
तस्वीरें पोस्ट 
किसी भी वॉल पर 
फिर भी कोई स्टोरी तो है 
या थी? हमारी भी !
अकेले सफर करते हुए 
लम्हा लिबास पहनकर 
सामने आ जाता है 
हाँ नसीहतों की फ़ेहरिस्त 
नहीं भूली मैं 
शॉल ओढ़े ही बैठी हूँ 
सीख गई हूँ, 
खुद का ख्याल रखना
ये ऊँचे-ऊँचे नारियल के पेड़
दौड़े जा रहे हैं 
बादलों को रिझाने को
इनसे जुड़ी हैं कुछ सूखी टहनियाँ 
पुरानी बातें होंगी कहने को 
झुकी इन पत्तियाें के पास 
वीडियो नहीं, लेकिन कैद रहेंगे
ये अकेले रिसते पल भी 
वैसे ही जैसे मैं समेट लेती थी 
तुममें सिमटते हुए
लहरों से कोई इंद्रधनुष
उछल कर बाहर आ जाता था
तुम कहते थे, 'चल, सेल्फी लेते हैं'
मैं रोक लेती थी, कहा था न
नज़ारे सिर्फ हम दोनों के हैं
किसी से साझा नहीं करेंगे 
अगर शब्दों में महसूस न
करा सकूँ, गुदगुदी एहसासों की 
तो मैं स्याही कैसी ?

©जूही गुप्ते


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