Sunday, August 26, 2018

केरल की राखी



वो नारियल थाली बिखर गई

लगा विप्लव-ग्रहण,अंधेरा है
तुम्हें 'केरल' पुकार रही
उसको संकट ने घेरा है


ऑफिस से उकताकर तुम
जा उसके घर सुस्ताते थे
लाती झट मुन्नर की चाय 
और घंटों तुम बतियाते थे

दोस्तों संग गए देखने
सहस्त्र नौकाओं की होड़
अचंभित दिल हिलौरे खाता
मची थी पानी वाली दौड़

परोस परौटा, रसीली सब्जी
पायसम कटोरी लाई थी
सुनहरे आँचल वाली पट्टू
नवेली भाभी को दिलवाई थी

कतारें पेड़ों की हुई सज्ज 
यूँ जल में झाँके जाती थी
हरे स्नेह की राखी बुनकर 
जैसे तुमको ताँके जाती थी

अद्भूत अल्लपी,सुहानी सुबह
किताब का पन्ना पलटा था
फिल्टर कॉफी में खोये तुम
दिन रूक रूक के चलता था

हॉउस बोट भी हुए ध्वस्त 
उसकी चंचलता के साथ
प्यारी बहन गुमसुम हुई
कि अब जाकर थामो हाथ

डटे रहेंगे, फिर उबरेंगे
क्या विपदा, क्या काल
केरल को जाकर कह दो
कि "साथ हूँ मैं हर हाल"

एक दूजे के पूरक हैं सब
अटूट अनूठा नाता है
धागा कच्चा,बंधन पक्का
भारत यही सिखाता है

© जूही गुप्ते

Tuesday, August 21, 2018

The Ekam





On the ice-capped alp
“She” is the prowess,
bigoted rules are void;
food-web is untangled
they live in unanimity;
the bull, the peacock
the serpent , the rodent...

bathes out the elixir
gulps in the venom
tucked are the galaxies
sanctity flows from the hair-bun;
King of Kailasa,
paves the way
through his trident
art prospers
death deciphers
anchors ark of the just
for both are must,
the mridanga , the tandava!

Alike is his eyes
deities and demons
the beasts, the humans
Thou is perfect
blackbody spectrum
the August
the Ekam

© Juhi Gupte

Friday, August 17, 2018

#tributetoatrueleader


जो रहा अरि-कुल का भी प्रिय
उसका ही जीवन सफल हुआ

वो अडिग रहा चट्टानों सम
सत्य चुप होकर भी अटल हुआ

-जूही🙏🏼

Wednesday, August 15, 2018

पर्व मनाओ



धुला है रास्ता अल सुबह
सारी रात थमा एक जगह
चलो भीग लो न बेवजह
कि तुम भी ठहर जाओ
ऐसा आज पर्व मनाओ

वातायन के पट खोलो
गुम हुई वो हँसी टटोलो
मेरी सुन लो, अपनी बोलो
सकुचाओ मत, गाओ
ऐसा अभी पर्व मनाओ

कच्ची सड़क, पहाड़ तिकोना
कोरे कागज पर जादू टोना
सस्ता कितना है खुश होना
रंग कोई मनचाहा उठाओ
ऐसा भी पर्व मनाओ

खुद से यूँ परदा कैसा?
बहुत देर तक चले न ऐसा
जैसा चाहो ,होगा वैसा
रूको ज़रा,फिर दौड़ लगाओ
जीवन है पर्व, रोज़ मनाओ!

© जूही गुप्ते


Thursday, August 2, 2018

In Nana Patekar's honour

वो पीता है
वो रीता है
वो जीता है
वो चीता है

तो कवि ही हुआ

© जूही