Wednesday, April 5, 2017

micropoetry


                                                                 

वो परेशान न होता 
तो इंसान न होता 

© Juhi Gupte

Monday, April 3, 2017

माँ, तुम उस घर मत जाना


चैत्र नवरात्री पर आई हो
स्त्री-उत्सव की अगुवाई हो
पर ममत्व न झुठलाना
माँ, तुम कुछ घर मत जाना

स्वागत का द्वार न खुलता हो
मन में सतत विकलता हो
चुभता हो उसका आना
माँ, तुम उस घर मत जाना

जिन्होंने किया जीना दुभर
बैठोगी उनके सिहाँसन पर ?
स्थान उसका न पहचाना
माँ,तुम उस घर मत जाना

अर्चनाओं से तुम्हें छल लेंगे
क्या भाव उनके निर्मल होंगे?
जो उस पर क़सतें हों ताना
माँ, तुम उस घर मत जाना

यहाँ चूनर होगी अर्पण
वहाँ तार-तार उसका दामन
घूँघट है चरित्र का पैमाना
माँ, तुम उस घर मत जाना

स्वप्न मिट्टी बन जाते हों
निर्णय बागी कहलाते हों
मंजूर मूरत का मुस्काना
माँ ,तुम उस घर मत जाना

वो सकुचा रही बुलाने से
तीज-त्यौहार के बहाने से
आशीष साहस का बरसाना
माँ उसके मन रम जाना

© जूही गुप्ते