Saturday, August 29, 2015

आज राखी है !!

थाली सजी पड़ी है ,
मिठाई पूछ रही है ,
देर हुई ,जाओगी कब ??
हाँ ,तुझसे मिलना बाक़ी है
मेरे भाई आज राखी है !!

कागज़ की एक नाव बनाते थे हम
बारिश के पानी में उसे चलाते थे हम
न जाने किस ध्येय की ओर;
तेरे बिन, बहते रहना बाक़ी है
मेरे भाई आज राखी है !!

मेरा रसोई का पहला प्रयास
तूने किया था कितना उपहास
फिर मेरा तुनकना और
तेरा वो मज़ाक उड़ाना बाकी है
मेरे भाई आज राखी है !!

सर्दियों में तुझे उठाती थी मैं
स्कूटी को स्टार्ट कराती थी मैं
वो तेरा फिर से चिढ़ जाना
और मेरा ,तुझे सताना बाकी है
मेरे भाई आज राखी है !!

किताबे , बस्ते ,खिलौने ,सायकल 
खुशी से बाँटते  थे  हम सब
एक दिन तेरा-मेरा बँट जाना
धूर्त रिवाज़ों की चालाकी  है
मेरे भाई आज राखी है !!

जीवन का प्रथम मित्र तू मेरा
बचपन का हर क्षण साथ है तेरा
भूल न सकूँ मैं ;
बस अब यादें बाकी है
मेरे भाई आज राखी है !!

हम दोनों हैं माँ -बाबा की सिंचाई
पुण्यों की तू करना खूब कमाई
बस हृदय जीते तू सबका
कलाई पर यह दुआ बाँधना बाकी है
मेरे भाई आज राखी है !!

दूर बहुत हूँ तुझसे ,
की घर आ नहीं पाऊँगी मैं
सबको समझा देना , इस बार
फिर कोई वचन निभाना बाकी  है
न जाने आज ये कैसी राखी है !!

© जूही गुप्ते

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