Friday, June 16, 2017

micropoetry







कह दो की सपना था 
मेरा तुमसे मिलना 
मिटा दो मेरी उलझन 
तुम्हारा अक्स भी 
जो सताता रहता है 
हँसते हुए रुला जाता है 
रोते हुए हँसा जाता है 

स्तब्ध हो जाती हूँ 
तुममें खो जाती हूँ 
रतजगे बहुत हो चुके 
खाली दिन भी रो चुके 
और नहीं लिख पाऊँगी 
बिन संगीत के शब्द 
बिन तुम्हारे कोई कविता 

© Juhi Gupte

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