उलझा-सा आज लड़ा मुझसे
वटवृक्ष बोल पड़ा मुझसे 
"धागे-फेरे", क्षेम स्त्री का ?
व्रत लो तुम,दूजी सावित्री का 
पिरोती स्वप्न सुहागिन थी 
नायगांव में ऐसी मालिन थी
ज्योतिबा-अर्द्धांगी स्त्री का  
व्रत लो तुम,उस 'सावित्री' का 
क्राँति-कोंपल सी फूटी थी 
ठूँठ-रूढ़ियों पर रूठी थी 
बाधाओं से प्रेरित स्त्री का 
व्रत लो तुम,उस सावित्री का 
लक्ष्य शिक्षा का साधे थी 
वह हर आँधी को बाँधे थी
इतिहास-अनल-अंकित स्त्री का 
व्रत लो तुम,उस सावित्री का 
न माँगा पति प्राण यम से 
अड़िग रही, लड़ी तम से 
प्रण पर न्यौछावर स्त्री का 
व्रत लो तुम,उस सावित्री का
जैसी मेरी वायवीय जड़ें
सब प्राप्य तुम्हारी ओर बढ़े
उपकार था स्त्री पर स्त्री का 
पुण्य व्यर्थ न हो सावित्री का
© Juhi Gupte
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