Sunday, July 2, 2017

micropoetry







हुआ यों कि कह बैठे 
गर सलीका सीख न जाऊँ 
ऐसा ही चलता रहा 
मैं कुछ न बन पाऊँ 
पर हूँ आज भी 
ईमां की सौदागर 
बाजार कैसे बन जाऊँ ?
शायरी करती हूँ कि 
बस इंसान रह जाऊँ !

©जूही गुप्ते 

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