तुम अब भी आते हो
मत याद आया करो
आजकल नहीं करती मैं
तस्वीरें पोस्ट
किसी भी वॉल पर
फिर भी कोई स्टोरी तो है
या थी? हमारी भी !
अकेले सफर करते हुए
लम्हा लिबास पहनकर
सामने आ जाता है
हाँ नसीहतों की फ़ेहरिस्त
नहीं भूली मैं
शॉल ओढ़े ही बैठी हूँ
सीख गई हूँ,
खुद का ख्याल रखना
ये ऊँचे-ऊँचे नारियल के पेड़
दौड़े जा रहे हैं
बादलों को रिझाने को
इनसे जुड़ी हैं कुछ सूखी टहनियाँ
पुरानी बातें होंगी कहने को
झुकी इन पत्तियाें के पास
वीडियो नहीं, लेकिन कैद रहेंगे
ये अकेले रिसते पल भी
वैसे ही जैसे मैं समेट लेती थी
तुममें सिमटते हुए
लहरों से कोई इंद्रधनुष
उछल कर बाहर आ जाता था
तुम कहते थे, 'चल, सेल्फी लेते हैं'
मैं रोक लेती थी, कहा था न
नज़ारे सिर्फ हम दोनों के हैं
किसी से साझा नहीं करेंगे
अगर शब्दों में महसूस न
करा सकूँ, गुदगुदी एहसासों की
तो मैं स्याही कैसी ?
©जूही गुप्ते
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