"मछली जल की", "चाँद
कटोरी"
मीठी बोली, थपकी-लोरी
बेफिक्र नींद सुलाने वाला 
था काव्य,
बचपन चहकाने वाला
थके प्रश्न
को,रुके युद्ध को 
मोह के आगे,झुके सिद्ध को 
                                      गीता पाठ
पढ़ाने वाला                                           
और काव्य,
रश्मिरथ चढ़ जाने वाला
    पाना जिसको
राम रतन  
प्रेम-प्यास,बिसरे तन-मन 
आर्त स्वर में गाने वाला 
है काव्य,
साँवले में समाने वाला
 द्रुत-दामिनी
सी इक रानी का
उस मिट्टी का, उस पानी का
शौर्य याद दिलाने वाला
हूँ काव्य,
युग-दीपक जलाने वाला
    प्यारे छूटे,प्याले
टूटे   
यहीं कहीं पर बैठे -बैठे 
‘मधुशाला’ पहुँचाने वाला 
वही काव्य,
‘अग्निपथ’ सजाने  वाला
   लोभराज में
निर्मल स्वाद के
होने वाले क्रांति-नाद के  
आज बीज बो जाने वाला 
मैं काव्य 
'कल',इतिहास कहलाने वाला 
© जूही गुप्ते
© Juhi Gupte
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