कह दो की सपना था
मेरा तुमसे मिलना
मिटा दो मेरी उलझन
तुम्हारा अक्स भी
जो सताता रहता है
हँसते हुए रुला जाता है
रोते हुए हँसा जाता है
स्तब्ध हो जाती हूँ
तुममें खो जाती हूँ
रतजगे बहुत हो चुके
खाली दिन भी रो चुके
और नहीं लिख पाऊँगी
बिन संगीत के शब्द
बिन तुम्हारे कोई कविता
© Juhi Gupte