नोटबंदी की घोषणा आई
बदलाव की पहल कहलाई
जमाख़ोरी पर कड़ा प्रहार
रुके पाँच सौ, रद्द हज़ार
जिन्हें देखकर मुँह मोड़ा था
बड़ी अकड़ में नाता तोड़ा था
याद आए वो रिश्तेदार
इसे पाँच सौ, उसे हज़ार
कहीं पुराने संदूक टूटे हैं
कहीं छोटे गुल्लक फूटे हैं
बूढ़े -बच्चों की जारी मनुहार
दिए पाँच सौ लिए हज़ार
कुछ स्तब्ध कुछ रूठें हैं
स्वार्थी हैं और झूठे हैं
जनमत के आगे बातें बेकार
उनकी पाँच सौ ,इनकी हज़ार
राज मानवता के परचम का
सामना अशांत कुलिश निर्मम का
सब साथ सज्ज और तैयार
यहाँ पाँच सौ, वहाँ हज़ार
अंत अगर हो काले धन का
शुद्धिकरण हो काले मन का
सुखद खबरों से भरे अख़बार
कभी पाँच सौ, कभी हज़ार
© जूही गुप्ते
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