Wednesday, April 13, 2016

ये बैठे हैं गेम खेलने


 शुक्रवार की शाम हुई है
वीकेंड की ख़ुशी बड़ी है
दो दिन टार्गेट्स नहीं झेलने
पर ये बैठे हैं गेम खेलने

मोबाइल चार्जिंग पर रखकर
द्रुतगति से खाना खाया
बेफ़िक्र ,थाली  को खिसकाकर
फिर बैठे ये गेम खेलने

कुछ बिल भरने है बाकी
तीन बार कर दी टोका-टाकी
मुझको ही पासवर्ड बताकर
ये बैठे हैं गेम खेलने

शनिवार की सुबह हुई अब
आखिर इनसे उकताकर
बेमन अकेले गई टहलने
वो घर बैठे है गेम खेलने


रिक्वेस्ट्स तो मुझे भी आती
पर कैंडी क्रश मैं कर नहीं पाती
तो चली किताबों से मिलने
ये बैठे हैं गेम खेलने

रविवार को भी क्रम जारी है
टेम्पल रन  इन पर भारी है
बाहर जाने का प्लान ड्रॉप कर
ये बैठे हैं गेम खेलने

सुविधा परस्त इस युग में
मनोरंजन ही लत बन जाता है
गहन विचार में ,मैं लगी डूबने
ये बैठें हैं गेम खेलने

अथक प्रतीक्षा करते करते
कविता बन गई बनते बनते
शब्दों से मैं भी लगी बहलने
वो अब भी बैठें हैं गेम खेलने
© जूही गुप्ते

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