शुक्रवार की शाम
हुई है
वीकेंड की ख़ुशी बड़ी
है
दो दिन
टार्गेट्स नहीं झेलने
पर ये बैठे हैं
गेम खेलने
मोबाइल चार्जिंग पर
रखकर
द्रुतगति से खाना
खाया
बेफ़िक्र ,थाली को खिसकाकर
फिर बैठे
ये गेम खेलने
कुछ बिल
भरने है बाकी
तीन बार
कर दी टोका-टाकी
मुझको ही पासवर्ड
बताकर
ये बैठे
हैं गेम खेलने
शनिवार की सुबह
हुई अब
आखिर इनसे
उकताकर
बेमन अकेले
गई टहलने
वो घर
बैठे है गेम
खेलने
रिक्वेस्ट्स तो मुझे
भी आती
पर कैंडी
क्रश मैं कर
नहीं पाती
तो चली किताबों से
मिलने
ये बैठे
हैं गेम खेलने
रविवार को भी
क्रम जारी है
टेम्पल रन इन पर
भारी है
बाहर जाने
का प्लान ड्रॉप
कर
ये बैठे
हैं गेम खेलने
सुविधा परस्त इस
युग में
मनोरंजन ही लत
बन जाता है
गहन विचार
में ,मैं लगी
डूबने
ये बैठें
हैं गेम खेलने
अथक प्रतीक्षा
करते करते
कविता बन गई
बनते बनते
शब्दों से मैं
भी लगी बहलने
वो अब
भी बैठें हैं
गेम खेलने
© जूही गुप्ते
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