Saturday, April 14, 2018

केशव तेरे भारत को ,फिर शाप चढ़ा है नारी का

क्या मिला महाकथा रच के ?
झूठ पड़ा सटा सच से !
कि घर ने खेली खूनी होली थी
संतप्त हुई ,वो तुझसे ये बोली थी

"लड़े-मरे तेरा कुल भी, घोष  है गांधारी का "
केशव तेरे भारत को , शाप चढ़ा था नारी का

तू था 'तथास्तु' कह आया
सौ दोष भी सह आया
देख कि अब क्या हो रहा
तू चिर-निद्रा में सो रहा ?
उठ ! सुन क्रंदन उस केसर की किलकारी का
केशव तेरे भारत को ,फिर शाप चढ़ा है नारी का

किस धर्म के अंधे भक्त हुए? 
सत्ता-कीचड़ में लिप्त हुए
हाथ उठे या कमल खिले
जनता को सिर्फ छल मिले

पीताम्बर छीटों से सना, दाग  है लाचारी का 
केशव तेरे भारत को ,फिर शाप चढ़ा है नारी का

मूर्खों सी बाते करते हैं
पापी घड़े यूँ भरते हैं
पुण्य मल-सा बह जाता है
शून्य भाव रह जाता है

बाँसुरी-स्वर से भर, आँचल नीरवता की क्यारी का
केशव तेरे भारत को ,फिर शाप चढ़ा है नारी का

एक दूजे पे थूक रहे
हैं खुद का घर फूंक रहे
ये लाल,हरे,नीले हो बिखरते हैं
बन गुंडे, झंडे लहराए फिरते हैं
शांति-गीता पाठ पढ़ा दे, इलाज कर बीमारी का
केशव तेरे भारत को, और शाप चढ़े न नारी का

© जूही गुप्ते

Sunday, March 11, 2018

खर्राटे!!




बात आप तक आ गई है 
होठों पर आते आते
चाहे जुड़े हैं कसमों रस्मों से
ये जन्मों के रिश्ते नाते
सहे नहीं जाते हैं मुझसे
उनके रोज़ रोज़ खर्राटे !!


सख्त कठोर हथौड़े कैसे
पड़ते हो कीलों पे जैसे
या रेस में बिगुल बजने पर
कसी लगाम चाबूक जड़ने पर
जब
हज़ार घोड़े हों दौड़ लगाते
इतने जोशीले होते हैं उनके ये खर्राटे!!


काम की लिस्ट मोटी थी
तय कर ऑफिस से लौटी थी
सुबह उठना है जल्दी
रह गई आँखे मैं मलती
और,
वो सोए जैसे सौ शेर हो गुर्राते
भोर तक लेते रहे चैन के खर्राटे!!


कानों में रुई के फाहे डाले
खुद को नींद के किया हवाले
तकिया दो हिस्सों में बँटा था
बस सपनों का टिकट कटा था
उफ्फ,
ट्रेन के जनरल डब्बों जैसे
धड़धड़ खड़खड़ चलते रहे खर्राटे!!


छुट्टी रविवार की आई थी
ओढ़ी जयपुरी रजाई थी
अच्छे दिन की अँगड़ाई अब ली
मैंने जनता सी करवट बदली
फिर
वो रहे सरकारी-बाबू से सुस्ताते
भरी दुपहरी चलाए वादों के खर्राटे!!


नज़्म मेरी मशहूर हुई
तारीफें थीं भरपूर हुई
खुशी जाहिर की उन्होंने
वो कैसे पीछे रह जाते !!
तो,
गड़-गड़-गड़-गड़ बजे
रात भर नगाड़े से खर्राटे !!
© जूही गुप्ते