Poems by Juhi
'उनको' देखा था छुपके दरीचों से अक्स मुझमें मिश्रियों सा खोता है..
बिछाए बैठी हूँ एहसास गलीचों से एक आहट से जाने क्या-क्या होता है
जूही
आहट... 👌!
आहट... 👌!
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