धुला है रास्ता अल सुबह
सारी रात थमा एक जगह
चलो भीग लो न बेवजह
कि तुम भी ठहर जाओ
ऐसा आज पर्व मनाओ
वातायन के पट खोलो
गुम हुई वो हँसी टटोलो
मेरी सुन लो, अपनी बोलो
सकुचाओ मत, गाओ
ऐसा अभी पर्व मनाओ
कच्ची सड़क, पहाड़ तिकोना
कोरे कागज पर जादू टोना
सस्ता कितना है खुश होना
रंग कोई मनचाहा उठाओ
ऐसा भी पर्व मनाओ
खुद से यूँ परदा कैसा?
बहुत देर तक चले न ऐसा
जैसा चाहो ,होगा वैसा
रूको ज़रा,फिर दौड़ लगाओ
जीवन है पर्व, रोज़ मनाओ!
© जूही गुप्ते
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