वो नारियल थाली बिखर गई
लगा विप्लव-ग्रहण,अंधेरा है
तुम्हें 'केरल' पुकार रही
उसको संकट ने घेरा है
ऑफिस से उकताकर तुम
जा उसके घर सुस्ताते थे
लाती झट मुन्नर की चाय
और घंटों तुम बतियाते थे
दोस्तों संग गए देखने
सहस्त्र नौकाओं की होड़
अचंभित दिल हिलौरे खाता
मची थी पानी वाली दौड़
परोस परौटा, रसीली सब्जी
पायसम कटोरी लाई थी
सुनहरे आँचल वाली पट्टू
नवेली भाभी को दिलवाई थी
कतारें पेड़ों की हुई सज्ज
यूँ जल में झाँके जाती थी
हरे स्नेह की राखी बुनकर
जैसे तुमको ताँके जाती थी
अद्भूत अल्लपी,सुहानी सुबह
किताब का पन्ना पलटा था
फिल्टर कॉफी में खोये तुम
दिन रूक रूक के चलता था
हॉउस बोट भी हुए ध्वस्त
उसकी चंचलता के साथ
प्यारी बहन गुमसुम हुई
कि अब जाकर थामो हाथ
डटे रहेंगे, फिर उबरेंगे
क्या विपदा, क्या काल
केरल को जाकर कह दो
कि "साथ हूँ मैं हर हाल"
एक दूजे के पूरक हैं सब
अटूट अनूठा नाता है
धागा कच्चा,बंधन पक्का
भारत यही सिखाता है
© जूही गुप्ते