My heart; it speaks a thousand words
Poems by Juhi
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Micropoetry
Saturday, June 16, 2018
ईद मुबारक
آج میرا کانہاں یہ دیکھ کر مسکرایا
سویّاں بنا کے میں نے, عید کا بھوگ لگایا
आज मेरा कान्हा ये देख के मुस्कुराया है
सिव्वयाँ बना के मैंने, ईद का भोग लगाया है
© जूही गुप्ते
Friday, June 15, 2018
Micropoetry
यूँ किया आखिर, सारी घड़ियाें को हटा दिया मैंने
कल-आज हुए बाहर, वक़्त को दफा किया मैंने
उतार फेंके नकाब-ए-झूठ,सच को सिया मैंने
रूह को ऐसे किया रफ़ू, और कुछ जी लिया मैंने
© जूही गुप्ते
Monday, June 11, 2018
सफर
तुम अब भी आते हो
मत याद आया करो
आजकल नहीं करती मैं
तस्वीरें पोस्ट
किसी भी वॉल पर
फिर भी कोई स्टोरी तो है
या थी? हमारी भी !
अकेले सफर करते हुए
लम्हा लिबास पहनकर
सामने आ जाता है
हाँ नसीहतों की फ़ेहरिस्त
नहीं भूली मैं
शॉल ओढ़े ही बैठी हूँ
सीख गई हूँ,
खुद का ख्याल रखना
ये ऊँचे-ऊँचे नारियल के पेड़
दौड़े जा रहे हैं
बादलों को रिझाने को
इनसे जुड़ी हैं कुछ सूखी टहनियाँ
पुरानी बातें होंगी कहने को
झुकी इन पत्तियाें के पास
वीडियो नहीं, लेकिन कैद रहेंगे
ये अकेले रिसते पल भी
वैसे ही जैसे मैं समेट लेती थी
तुममें सिमटते हुए
लहरों से कोई इंद्रधनुष
उछल कर बाहर आ जाता था
तुम कहते थे, 'चल, सेल्फी लेते हैं'
मैं रोक लेती थी, कहा था न
नज़ारे सिर्फ हम दोनों के हैं
किसी से साझा नहीं करेंगे
अगर शब्दों में महसूस न
करा सकूँ, गुदगुदी एहसासों की
तो मैं स्याही कैसी ?
©जूही गुप्ते
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