Saturday, August 19, 2017

सरहद पार रहती है!!





सुनती है मेरे अज़ीज नगमें
लिखती रूह छूने वाली नज़्में
ख़्वाबों को मेरे आमीन कहती है
सरहद पार आफ़रीन रहती है

तकलीफें साझा कर लेते हैं
लतीफों में हँसी ढूँढ लेते हैं
यहाँ मैं झूझती, वहाँ वो सहती है
सरहद पार भी वही हवा बहती है

हम दोनों के एक से हाल होते हैं
दिलों में वही सवाल होते हैं
वो मुझको अपनी बहन कहती है
सरहद पार मेरी बहन रहती है


© Juhi Gupte

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