Saturday, May 13, 2017

mothers day






रुक जाओ ज़रा 
ये अनवरत जो 
दौड़े जा रही हो 
कहूँगी नहीं तुमसे 
शब्दों में 
सुन लो मेरा अंतर्मन 

चाय ठंडी हो जाती है
रोटियां सेंकते हुए 
बाद में पीने को रखी हुई 
आज भी तुम ,
अपने फुर्सत के पल 
यूँ ही न्यौछावर कर देती हो 
हम सब पर 

कैसे भाँप लेती हो 
मेरी हँसी में बेचैनी 
औरों से आसानी से  छुपाई हुई 
हाँ , फ़ोन भी आ जाता है 
अचूक तीर सा, जब भी 
विकलता झंझोड़ने वाली होती है 

कहती हो जब की 
अब नहीं वो बल -साहस
मुझ पर है सब निर्भर 
झुर्रियों में दबे हैं 
जीवन के अनुभव 
कमज़ोर तुम नहीं 
अब भी मैं हूँ 

स्वाद ले लो माँ 
एक बार खुद को 
सबसे पहले रख लो 
 कैलेंडर की तारीखों में 
पुरानी डायरी की लिस्ट में 

साया कर देना तुम 
आज भी तुम्हे नहीं 
मुझे ज़रूरत है 
तुम्हारी , तुमसे ज़्यादा!!

© Juhi Gupte

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