नारियल,फूल ,मिठाई
अग्नि-अर्पित गेहूँ की जवारे
नई शरारती पिचकारी
तीन-चार पॅकेट गुब्बारे
बेहद खास त्यौहार की
वो सीधी-सादी तैयारी
निकल पड़ती अल-सुबह
नन्हे पड़ोसियों की टोली
अठखेलियों के छीटों से
एक सराबोर बरामदा
बेपरवाह चेहरों की
रंग-बिरंगी रंगोली
महत्त्वाकांक्षी होड़ में गुजरा
नम आँखों में सूखा फागुन
पानी-सा पारदर्शी नहीं
टूटता कहीं,बिखरता मन
दूर है मुझसे , जाने कब छुटा
मेरा रंग , मेरा बचपन
© जूही गुप्ते
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