विजयादशमी पर प्रसन्न हो सभी
फिर सुन लो अनकही मेरी भी,
अब तक दोषों की संज्ञाओं को मानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
उत्तर -पश्चिम के कैकेय देश से,
आई थी ब्याह के अवध नरेश से,
दशरथ -प्रिया रघुकुल की रानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
सुंदरता और साहस का प्रतीक मैं,
निडर स्वर और निर्णय सटीक मैं,
स्वतंत्र विचारक ,'कह लो' मनमानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
दक्षिण वाले अधिकार हमें कहाँ होते थे,
स्वप्न -इच्छाएँ घूँघट में बैठे रोते थे
चिर स्त्री-युद्ध की सच्ची क्षत्राणी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
दिव्य-रत्न नवमी के दिन मैंने पाया था,
यशोदा-आँचल में जैसे कान्हा आया था,
मर्म-धर्म-कर्म से परे 'राम' को जानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
शस्त्र-शास्त्र वेद-विद्या उसे सिखाती थी,
संयम -नियम रघु को रोज़ पढ़ाती थी,
भांति-नीति -रीति-काल की ज्ञानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
बुद्धिशाली थीं चारों जनक कन्याएँ,
धन्य हुए पुत्र मेरे , जो उनको पाए,
सूर्यवंश की सास वही अभिमानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
अब राघव राजनीति में लग जाता,
तो विंध्याचल के पार न जाने पाता,
वचन कलंकित मेरे ,वनवास की दानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
कोमल चरणों में जब कंटक चुभते थे,
नीरव महल मुझ पर प्रश्न -घाव करते थे,
थका रतजगा दृगजल बिन पानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
वज्र-हृदय कर माँ, मानव को 'राम' बनाती,
विचलित होते हैं युग , वो कैकेयी कहलाती,
मैं ही अंश शक्ति का, और भवानी हूँ
एक किस्से से अधिक कहानी हूँ!!
© जूही गुप्ते
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