Poems by Juhi
भोले बोल, सहन परिवर्तन प्राची है, नित लगती नूतन अपने जोड़े, संस्कारी बिन्दी कौन सखि माँ? रे बहन, हिन्दी!
बहुत बह चुकी है आँखों से स्याही तुम्हारी बाहों की चुनरी ओढ़नी है
जो तुम्हारा सही हाल बता दे बस मुझे वो किताब पढ़नी है
- जूही